मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



श्रेणी: कवितायें

  • श्रेणी:

    स्नान गृह में

    दैनिक जागरण 29 अप्रैल 2007 

    दाढ़ी बना ले चाहे तू दांत साफ कर ले
    पर भाई चल पहले नल बंद कर दे
    भूजल अनावश्यक बाहर आ रहा
    भूजल स्तर नीचे जा रहा
    अब फव्वारे से या टब में नहीं है नहाना
    बाल्टी भर पानी से ठीक है नहाना
    जब बाल्टी भर पानी से नहाया जा सके
    दो बाल्टी भर पानी बहाना है क्यों
    भूजल संरक्षण अभियान सफल बनाया जा सके
    अनावश्यक दोहन करके जल संकट बनाना है क्यों
    साबुन या धोने का पाउडर पहले है लगाना
    फिर कपड़ा भली प्रकार है धोना
    अनावश्यक जल नल से नहीं है बहाना
    ऐसे कल का जल संरक्षण नहीं है होना
    नल बंद करके साबुन है लगाना
    फिर साबुन धोने को नल है चलाना
    ऐसी नहीं करनी है नादानी
    कहना पड़े कि अब नहीं रहा है पानी


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    समय का स्वभाव

    दैनिक जागरण 24 अप्रैल 2007

    समय तो बहता जल है
    वह बहता जाता गाता है
    तू संभाल पलपल की करता चल
    जीवन पलपल से बन पाता है
    गोली छूटती है बन्दूक से
    फिर कभी नहीं आती है हाथ
    सकल दिवस जाता पलपल में
    घड़ी भी नहीं देती है साथ


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    आलस्य

    दैनिक जागरण 18 अप्रैल 2007 

    प्राप्त वस्तु से संतुष्ट हुआ
    तूने मेहनत करना छोड़ा क्यों
    कोई वस्तु रहेगी कब तक पास तेरे
    कर्म से तूने नाता तोड़ा क्यों
    आलस्य में क्यों बैठ गया
    तू अपने हाथपांव पसार
    मिट्टी का खिलौना मिट्टी में मिला दे
    देख मेहनत का भी चमत्कार
    आलसी नहीं आलस्य भगा दे
    तू अगल बगल से दूर
    घोड़ा तन है तेरा
    चाबुक मेहनत मार भरपूर
    लगेगी भूख भागेगा सरपट
    अपनी ही मंजिल ओर
    चाहे कठिन है राह तेरी अपनी
    पाएगा तू जरूर मंजिल छोर


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    मेहनत

    अमर उजाला 4 अप्रैल 2007

    कली से बनते हैं फूल
    खिलते हैं फूल कांटों में
    अभ्यास बनती है मेहनत
    रहती नहीं है मेहनत बातों में
    खोज जिसे होती है
    मंजिल पा ही लेता है
    बिना परिश्रम किए जो ढूंढता है
    अपना समय नष्ट कर लेता है
    मेहनत से मिलता है मान
    मेहनत से बनती है शान
    पहचान बनाती मेहनत अपनी
    मेहनत से मिलता है भगवान

    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    धौलाधार का शृंगार

    दैनिक जागरण 4 अप्रैल 2007 

    आहा कैसी सुन्दर ओढ़ी बर्फीली चादर धौलाधार ने
    शुष्क मौसम से पाई मुक्ति धौलाधार ने
    नाले झरने नदियां सब फिर बहने लगे हैं
    ताल बावडि़यां कूप जल से भरने लगे हैं
    धरती खेत खलिहानों को मिलने लगा है पानी
    रिमझिम रिमझिम बरसने लगा है पानी
    बर्फ से किया है फिर श्रृंगार धौलाधार ने
    आहा कैसी सुन्दर ओढ़ी बर्फीली चादर धौलाधार ने


    चेतन कौशल "नूरपुरी"