दैनिक जागरण 3 मई 2007
मातृ भूमि तुझको
करूं मैं क्या अर्पण
साहस नहीं मुझमें
बिन देरी करूं मैं आत्म समर्पण
बस कार्य के सिवाय
फल की ओर न हो मेरा ध्यान
सेवा की हो डगर अपनी
और नित हो तुझे कोटि कोटि मेरा प्रणाम
श्रेणी: दैनिक जागरण हिमाचल
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13. कोटि – कोटि प्रणाम
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12. स्नान गृह में
दैनिक जागरण 29 अप्रैल 2007
दाढ़ी बना ले चाहे तू दांत साफ कर ले
पर भाई चल पहले नल बंद कर दे
भूजल अनावश्यक बाहर आ रहा
भूजल स्तर नीचे जा रहा
अब फव्वारे से या टब में नहीं है नहाना
बाल्टी भर पानी से ठीक है नहाना
जब बाल्टी भर पानी से नहाया जा सके
दो बाल्टी भर पानी बहाना है क्यों
भूजल संरक्षण अभियान सफल बनाया जा सके
अनावश्यक दोहन करके जल संकट बनाना है क्यों
साबुन या धोने का पाउडर पहले है लगाना
फिर कपड़ा भली प्रकार है धोना
अनावश्यक जल नल से नहीं है बहाना
ऐसे कल का जल संरक्षण नहीं है होना
नल बंद करके साबुन है लगाना
फिर साबुन धोने को नल है चलाना
ऐसी नहीं करनी है नादानी
कहना पड़े कि अब नहीं रहा है पानी
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11. समय का स्वभाव
दैनिक जागरण 24 अप्रैल 2007
समय तो बहता जल है
वह बहता जाता गाता है
तू संभाल पलपल की करता चल
जीवन पलपल से बन पाता है
गोली छूटती है बन्दूक से
फिर कभी नहीं आती है हाथ
सकल दिवस जाता पलपल में
घड़ी भी नहीं देती है साथ
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10. आलस्य
दैनिक जागरण 18 अप्रैल 2007
प्राप्त वस्तु से संतुष्ट हुआ
तूने मेहनत करना छोड़ा क्यों
कोई वस्तु रहेगी कब तक पास तेरे
कर्म से तूने नाता तोड़ा क्यों
आलस्य में क्यों बैठ गया
तू अपने हाथपांव पसार
मिट्टी का खिलौना मिट्टी में मिला दे
देख मेहनत का भी चमत्कार
आलसी नहीं आलस्य भगा दे
तू अगल बगल से दूर
घोड़ा तन है तेरा
चाबुक मेहनत मार भरपूर
लगेगी भूख भागेगा सरपट
अपनी ही मंजिल ओर
चाहे कठिन है राह तेरी अपनी
पाएगा तू जरूर मंजिल छोर
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9. धौलाधार का शृंगार
दैनिक जागरण 30 मार्च 2007
आहा कैसी सुन्दर ओढ़ी बर्फीली चादर धौलाधार ने
शुष्क मौसम से पाई मुक्ति धौलाधार ने
नाले झरने नदियां सब फिर बहने लगे हैं
ताल बावडि़यां कूप जल से भरने लगे हैं
धरती खेत खलिहानों को मिलने लगा है पानी
रिमझिम रिमझिम बरसने लगा है पानी
बर्फ से किया है फिर श्रृंगार धौलाधार ने
आहा कैसी सुन्दर ओढ़ी बर्फीली चादर धौलाधार ने