मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



श्रेणी: दैनिक जागरण हिमाचल

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    1. फौलादी सीना

    दैनिक जागरण 1 जनवरी 2008 

    श श श सावधान सावधान
    आ गया तूफान तूफान तूफान
    श श श सावधान सावधान
    समुद्री तूफान थम जाते हैं
    किनारा ठोस रामसेतु होने दो
    आंधी तूफान दिशा बदल लेते हैं
    हर कदम अडिग हिमालय सा होने दो
    तूफान जिन्दगी धराशायी हो जाते हैं
    नेक इरादे इन्सान के होने दो



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    22. सुहाना मौसम

    दैनिक जागरण 18 दिसम्बर 2007

    सर्दी का मौसम आया है
    बन कर काली घटा छाया है
    बर्फ बन कर गिरती फुहार है
    चाँदी सी चमकने लगी धौलाधार है
    रिमझिम पानी बरसने लगा है
    किसानों का मन हर्षाने लगा है
    डाली डाली फिर होने लगा श्रृंगार है
    चाँदी सी चमकने लगी धौलाधार है
    मतदान का सुहाना मौसम लगता अब है
    दल का दल से गिलासिकवा भी गजब है
    मतदाता से मतदाता करता सोच विचार है
    चाँदी सी चमकने लगी धौलाधार है
    इस बार मतदाता पसंद की जो सरकार बनेगी
    जनता तो उसे निज हित की बात कहेगी
    उसने हर समस्या का करना खण्डाधार है
    चाँदी सी चमकने लगी धौलाधार है
    सरकार चाहे जिस दल की आए
    जनता की भूख प्यास अवश्य ही मिटाए
    सत्ता पलटने को वह हर समय तैयार है
    चाँदी सी चमकने लगी धौलाधार है



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    10. विद्यार्थी जीवन निर्माण

    20 नवम्बर 2007 दैनिक जागरण

    मानों तो मानव जीवन का निर्माण किसी भवन का निर्माण करने से कोई कम नहीं है। भवन का निर्माण कार्य किसी निश्चित अवधि तक तो समाप्त हो जाता है पर जीवन निर्माण का कार्य बिन रोके लम्बे समय तक चलाए रखने की अपेक्षा बनी रहती है। इसका वर्णन किसी सफल साधक की जीवन गाथा से मिल सकता है।
    विद्यार्थी जीवन का आधार बनाने के लिए सर्व प्रथम आवश्यक है उसके धरातल का निरीक्षण करना। घर में माता-पिता तथा विद्यालय में गुरुजनों के द्वारा उसका जीवन निर्माण करने से पूर्व उसकी नींव तैयार करनी होती है। उन्हें देखना होता है कि वह किस योग्य है? उसमें ऐसे क्या गुण विद्यमान हैं जो उसके लिए अति आवश्यक हैं। उसमें ऐसी क्या विशेषताएँ हैं जो उसके जीवन की नींव को सुदृढ़ कर सकती हैं।
    माता-पिता अथवा गुरुजनों द्वारा विद्यार्थी में विद्यमान विशेष गुणों के आधार पर उसके लिए कोई उपयुक्त साध्य निर्धारित करना होता है। उसे जीवन में क्या करना है? वह स्वयं में क्या बनने की क्षमता रखता है? उसमें ऐसा कौन सा गुण है जिसे थोड़ा सा सहारा मिलने पर वह प्रगति पथ पर तांगे के घोड़े की भांति सरपट भागने में सक्षम हो सकता है। यह सब माता-पिता तथा गुरुजनों द्वारा जान लेना अनिवार्य है।
    विद्यार्थी की साध्य क्षमता का अनुमान मात्र अनुमान न बना रहे, इसलिए उसे भली प्रकार से जांच-परख कर ही माता-पिता व गुरुजनों को उसके अनुकूल साधन जुटाने होते हैं ताकि वह उनकी सहायता से अपने जीवन लक्ष्य की प्राप्ति करने का अभियान तेज कर सके।
    विद्यार्थी के लिए उसकी अपनी योग्यता, लक्ष्य प्राप्त करने की क्षमता और उत्तम संसाधनों का मोल और अधिक बढ़ जाता है जब उसे अपने माता-पिता और गुरुजनों के सुस्नेह और सानिध्य में स्वगुण सम्पन्न अभिरुचि के अनुरूप उपयुक्त शिक्षण-प्रशिक्षण प्राप्त होता है। उसे लाख बाधाएं होने पर भी लक्ष्य की प्राप्ति करना अनिवार्य है। उससे स्थानीय परिवार तथा सम्पूर्ण समाज को होनहार युवा और गुण सम्पन्न नागरिक मिलते हैं। विद्यार्थी जीवन निर्माण में माता-पिता और गुरुजनों की प्रमुख भूमिका रहती है। क्या वर्तमान में हम माता-पिता और गुरुजन अपने इस दायित्व का भली प्रकार निर्वहन कर रहे हैं?
    20 नवम्बर 2007 दैनिक जागरण

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    21. वोट हमारा

    दैनिक जागरण 16 नवम्बर 2007 

    कदम से कदम मिलाकर जो चलेगा,
    वोट तो हमारा, उसी को मिलेगा,
    पीछे हमसे अब कोई रहेगा नहीं,
    अकेला वो कष्ट सहेगा नहीं,
    अपने साथ, सबको लेकर जो चलेगा,
    वोट तो हमारा, उसी को मिलेगा,
    मन में कोई मैल आए न,
    मन की बात, मन में छुपाए न,
    विश्वास मत, दोबारा प्राप्त जो करेगा,
    वोट तो हमारा, उसी को मिलेगा,
    जनतन्त्र है हमारा, हम जनता के,
    जनता का काम अपना, हम सेवक जनता के,
    समझकर काम अपना, जनता का जो करेगा,
    वोट तो हमारा, उसी को मिलेगा,
    सर्वोच्च स्थान, राष्ट्र का है,
    राष्ट्र का नायक, राष्ट्र का है,
    राष्ट्र का माथा सम्मानित, ऊंचा जो करेगा,
    वोट तो हमारा, उसी को मिलेगा,



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    11. गुरु का महत्व

    15 नवम्बर 2007 दैनिक जागरण

    भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान सर्वोपरि है। घर पर माता-पिता और विद्यालय में गुरु को उच्च स्थान प्राप्त है। शास्त्रों में इन तीनों को गुरु कहा गया है। मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, गुरु देवो भव। गुरु माता को सर्व प्रथम स्थान प्राप्त है क्योंकि वह बच्चे को नव मास तक अपनी कोख में रखे उसका पालन-पोषण करती है। जन्म के पश्चात ज्यों-ज्यों शिशु बड़ा होता जाता है त्यों-त्यों वह उसे आहार तथा बात करना सिखाने के साथ-साथ उठने, बैठने और चलने के योग्य बनाती है। गुरु पिता परिवार के पालन-पोषण हेतु घरेलु सुख-सुविधाएं जुटाने का कार्य करता है और परिवार को अच्छे संस्कार देने का भी ध्यान रखता है।
    विद्यालय में गुरुजन विद्यार्थी में पनप रहे अच्छे संस्कारों की रक्षा करने के साथ-साथ उसे धीरे-धीरे बल भी प्रदान करते हैं ताकि वह भविष्य में आने वाली जीवन की हर चुनौति का डटकर सामना कर सके।
    गुरु भले ही घर का हो या विद्यालय का, वह राष्ट्र के प्रति समर्पित भाव वाला होता है। उसके द्वारा किए जाने वाले किसी भी कार्य में राष्ट्रीय भावना का दर्शन होता है। जिससे देश-प्रेम छलकता है। गुरु के मन, वचन और कर्म में सदैव निर्भीकता हिलोरे लेती रहती है। वह जनहित में निष्कपट भाव से सोचने, बोलने और कार्य करने वाला होता है। गुरु को अपने विषय का पूर्ण ज्ञान होता है। एक तत्व ज्ञानी या गुरु ही किसी विद्यार्थी को उसकी आवश्यकता अनुसार उचित शिक्षण-प्रशिक्षण देकर उसे सफल स्नातक और अच्छा नागरिक बनाता है।
    गुरुर्बह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेष्वरः गुरु साक्षात परमब्रह्म तस्मै श्री गुरुवैे नमः। शास्त्रों में गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश देवों के तुल्य माना गया है जिनमें सामाजिक संरचना, पालना और बुराइयों का नाश करने की अपार क्षमता होती है। गुरु आत्मोत्थान करता हुआ अपने विभिन्न अनुभवों के आधार पर विद्यार्थी को उच्च शिक्षण-प्रशिक्षण देकर समर्थ बनाता है। क्या हम घर पर गुरु माता-पिता और विद्यालय में गुरुजन अपने इन दायित्वों का भली प्रकार निर्वहन करते हैं?
    15 नवम्बर 2007 दैनिक जागरण