मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



श्रेणी: दैनिक जागरण हिमाचल

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    14. सत्य आचरण

    दैनिक जागरण 16 सितम्बर 2006

    श्रेष्ठ साहित्य है कामधेनु
    दूध सम मिलती है शक्ति
    ज्ञानी की बात ही छोड़ो
    मूर्ख भी करने लगता है भक्ति
    सद्ग्रंथ खोलो पढ़ लो जरा
    जीवन कल्याण हो जाएगा
    सत्य आचरण करते चलो
    जमाना सत्युग हो जाएगा



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    13. धरती मां

    दैनिक जागरण 15 जुलाई 2006

    धरती मां धरती मां
    तू है सबकी पालक पोषक धरती मां
    सर्दी गर्मी वर्षा सब सहती जाती
    मीठे कन्दमूल वनस्पति उपजाती
    फूलफल अन्न दालें खिलाती
    देकर सकल पदार्थ घर बाहर भरती मां
    धरती मां धरती मां
    तू है सबकी पालक पोषक धरती मां
    ऊंचे पहाड़ों से बनी तेरी छाती है
    वन्य सम्पदा की तू ओढ़े साड़ी है
    कल कल करते झरने तेरे दूध के धारे हैं
    लहराती फसलें प्राणी पोशण करती मां
    धरती मां धरती मां
    तू है सबकी पालक पोशक धरती मां
    नहीं दुर्योधन दुशासन तेरी इज्जत लूट हैं सकते
    हर समय यहां रक्षा तेरी कृष्ण मुरारी हैं करते
    पूत कपूत हो जाता माता नहीं कुमाता होती है
    तू सबके सिर आंचल की ठण्डी छाया करती मां
    धरती मां धरती मां
    तू है सबकी पालक पोषक धरती मां



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    12. प्रेरणा से

    दैनिक जागरण 8 जुलाई 2006

    मन की इच्छाएं बढ़ती जा रहीं
    बुद्धि निर्णय लेने में हो गई असमर्थ
    इद्रियां पथभ्रष्ट होती जा रही
    हृदय विशालता का नहीं कोई रहा अर्थ
    समाज बंट गया धर्म जाति वर्ग वादविवादों में
    घिर गया ऊंचनीच भेदभाव की दीवारों में
    विकासशील जीवन यात्रा तोड़ रही दम
    विकृत समाज व्यथा हो रही न कम
    हे विचारशील स्थिर मन और इद्रिय बलवान
    ठोस पत्थर नींव समाज के तू है आत्मा महान
    फिर कर ऐसी सभ्यता कला संस्कृति का निर्माण
    प्रेरणा तेरी से हो जाए जन समुदाए का कल्याण



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    11. ज्ञान और शक्ति

    दैनिक जागरण 21 जून 2006

    है बिन ज्ञान के शक्ति अंधी
    समस्याएं करती है जटिल पैदा
    शक्ति बिना है ज्ञान अपाहिज
    कुछ ही होता है मुश्किल पैदा
    ज्ञान और शक्ति मिलाकर
    जब किया जाता है काम
    सफलता की जय होती है
    कर्ता को भी मिलता है इनाम
    धार चढ़ी नहीं जिस तलवार
    वह है तलवार कह सकता है कौन
    शक्ति लिए अपार व साथ अज्ञान भी
    मनवा सफलता पा सकता है कौन



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    10. नारी

    दैनिक जागरण 10 जून 2006 

    उठ जाग ऐ नारी भारत की
    मिट न पाए अब पहचान और भारत की
    तू नकल पश्चिम की क्यों करती है
    तू रंगरूप अपना क्यों बिगाड़ा करती है
    जीन्स पैंटकमीज पहनें सिर मुंडवा करके
    दिखाए खुद को जैकेट कोट हैट लगा करके
    उठ जाग ऐ नारी भारत की
    मिट न पाए अब पहचान और भारत की
    तू शराब सिगरेट पान करती क्लब क्यों जाती है
    हाथ पति का छोड़कर कमर क्यों मटकाती है
    तू बाहें बनाए गैर मर्द की अपने गले का हार जहां
    देह प्रदर्शन करके भी नहीं मिलता है पति का प्यार वहां
    उठ जाग ऐ नारी भारत की
    मिट न पाए अब पहचान और भारत की
    तू बेटी है मां भी प्यारे भारत की
    तू बहना बहु और लाज है भारत की
    देवी दुर्गा काली और सरस्वती भी
    अर्धांगिनी संगिनी मन्त्री नर-नारायण की
    उठ जाग ऐ नारी भारत की
    मिट न पाए अब पहचान और भारत की