सांपों को दूध पिलाना केवल उनके विष को बढ़ाता है, इसी प्रकार मूर्खों को दिया हुआ उपदेश उन्हें प्रकुपित ही करता है, न कि शांत । अतः हमें प्रत्येक कार्य में पात्र-अपात्र का अवश्य ही ध्यान रखना चाहिए ।
"देवी! समुद्र तुम्हारा परिधान है, पर्वत स्तन मण्डल है, जिनका वात्सल्य रस नदियों में प्रवाहित हो रहा है। हे विष्णु पत्नि! मैं तुम्हें प्रणाम करता हूं। मेरे पैरों की स्पर्श होने की घृष्टता क्षमा करना"।