दैनिक जागरण 13 जून 2007
पल भर नहीं जो कर्महीन रहता
कुछ न कुछ करता रहता है
रखता अज्ञान शोषण अत्याचार पर कड़ी नजर
दहकते अंगारों पर बे खबर चलता है
राह में मुसीबतें आएं चाहे जितनी
वह नित आगे बढ़ता जाता है
मौत भी सामने क्यों न आए
वह खुशी से निज कण्ठ लगाता है
क्रांति कभी आ नहीं सकती
है यह तो उसमें दम नहीं
चाहे क्रांति होती है बलवान बहुत
पर देखा क्रांतिकारी भी कुछ कम नहीं
चेतन कौशल "नूरपुरी"
श्रेणी: स्व रचित रचनाएँ
-
श्रेणी:कवितायें
क्रांतिकारी
-
श्रेणी:कवितायें
सीने में
दैनिक जागरण 27 मई 2007
कोई चिंगारी शोला नहीं बन सकती
ऐसा उसमें दम नहीं
शोला चिंगारी से बनता है
पर चिंगारी शोले से नहीं
तिल भर चिंगारी में इतना दम है
पल भर में उससे शोला बन जाता है
शोला तो दहकता अंगारा है
उससे सब कुछ राख हो जाता है
सीने में जिसके आग दवी हो
दवा ही उसको रहने दो
पंखा न उसे करना कभी
कहीं शोला न बन जाए वो
चेतन कौशल "नूरपुरी"
-
श्रेणी:कवितायें
भूजल दोहन
दैनिक जागरण 18 मई 2007
बूंद बूंद से होता है भूजल पुनर्भरण
सुनियोजित करना है भूजल दोहन व्यवहार
सुरक्षित रखना है शुद्ध भूजल भंडार
सुखी रहेगा मनमोहन संसार
भूजल धरती की है अमूल्य सम्पत्ति
व्यर्थ दोहन है आने वाली विपत्ति
भूजल धरती का करता है श्रृंगार
अनावश्यक दोहन सरासर है निराधार
चेतन कौशल "नूरपुरी"
-
श्रेणी:कवितायें
कविता
दैनिक जागरण 15 मई 2007
वीरों की तू पोषणहारी
तू है कविता कवि की प्यारी
देखा है मैंने तुझे सबके साथ
पर वे सब तुझे नहीं लगाते हाथ
अत्याचारी की तू हत्यारी
तू है कविता कवि की प्यारी
जिसने किया जब नीचता को सलाम
तूने किया उसका काम तमाम
दुराचारी की तू संहारणहारी
तू है कविता कवि की प्यारी
चेतन कौशल "नूरपुरी"
-
श्रेणी:कवितायें
ईर्ष्या घृणा
दैनिक जागरण 9 मई 2007
आग से खेल रहा क्यों?
वह राख बनाया करती है
ईर्ष्या से भी प्रेम कर रहा
हंसते को रुलाया करती है
घृणा कर नीच विचारों से
मगर इन्सान से नहीं
करके ईर्ष्या घृणा इन्सान से
रह सकता तू सुख शांति से नहीं
चेतन कौशल "नूरपुरी"