मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



श्रेणी: परिवार

  • श्रेणी:

    एकाकी परिवार

    परंपरागत संयुक्त परिवार से वर्तमान एकाकी परिवार बहुत भिन्न हैं । इनमें मात्र माता - पिता और नौकर - चाकर ही होते हैं । पिता नौकरी करता है और माता घर का सब कार्य करती है या दोनों ही नौकरी करते हैं । अगर वे दोनों नौकरी करते हों तो घर और बच्चे की देख भाल के लिए उन्हें मात्र नौकर, आया या नौकरानी पर निर्भर रहना पड़ता है ।

  • श्रेणी:

    संयुक्त परिवार

    विश्व भर में अन्य सभ्यताओं की अपेक्षा मात्र सत्सनातन समाज ही एक ऐसा समाज है जिसकी दृष्टि से देखने पर मातृ - पक्ष में नानी - नाना, मामी - मामा, मासी - मासड़ मिलते हैं जबकि पितृ - पक्ष में दादी - दादा, चाची - चाचा, ताई - ताया, बुआ - फूफ़ा मिलते हैं । इन दोनों परिवारों के सभी संस्कारी लोग कभी अपने - अपने परिवार में संयुक्त रूप से रहते थे । वे आपस में मिलजुल कर कार्य करते थे और एकजुट रहकर पारिवारिक दुःख - सुख का भी सामना करते थे, बच्चों को सबका प्यार व अच्छे संस्कार मिलते थे । वह संयुक्त परिवार कहलाता था । लेकिन वर्तमान में भाग - दौड़ की जिन्दगी में ऐसे परिवार या तो पूर्णरूप से लुप्त हो गए हैं या जो बचे हुए हैं, वे लुप्त होने के कगार पर पहुँच गए हैं ।  

  • श्रेणी:

    परिवार – माता पिता 

    सृष्टि में तीन तत्व ईश्वर, जीव और प्रकृति प्रमुख हैं । सृष्टि चलाने हेतु जुगल नर - नारी की आवश्यकता होती है । नारी के बिना किसी भी नर के लिए परिवार की कल्पना करना असंभव है । नारी अपने परिवार और समाज के कल्याणार्थ अपना सब कुछ न्योछावर कर देती है ।  
    परिवार में माता - पिता द्वारा संस्कारित, गुरु द्वारा दीक्षित और अध्यापक द्वारा शिक्षित - प्रशिक्षित स्नातक युवा ही अपने जीवन की चुनौतियों, बधाओं, कठिनाइयों और दुःख - सुख का धैर्य और साहस के साथ सामना करने में सक्षम होते हैं । इससे वे सामाजिक एवंम राष्ट्रीय जिम्मेदारियों को भी भली प्रकार निभाते हैं ।
    नर - नारी शादी के पश्चात् पति - पत्नी एक दूसरे के पूरक होते हैं । बच्चे के जन्मदाता माता - पिता होते हैं । माता बच्चे को नौ मास तक अपने गर्भ में, तीन वर्ष तक अपनी बाहों में और जिंदगी भर अपने हृदय में रखती है । माता ही बच्चे को खड़े होना, चलना, बोलना, खाना, नहाना, कपड़े पहनना, सर पर कंघी करना आदि सब कार्य करना सिखाती है ।
    गुरु माता – पिता बच्चे को वेद सम्मत संस्कार देते हैं । इसके साथ ही साथ वे परिवार/समाज का निर्माण/कल्याण भी करते हैं । जिस प्रकार महिला अपने परिवार और समाज की आंतरिक जिम्मेदारियों को भली प्रकार संभालती है, ठीक उसी प्रकार पुरुष भी परिवार हित में बाह्य जिम्मेदारियों को संभालते हैं ।