दिनांक 2 अक्तूबर 2025
त्रिगुणमयी प्रकृति –
गीता अनुसार – “प्रकृति त्रिगुण प्रधान है - सात्विक गुण, राजसिक गुण और तामसिक गुण l गुण गुणों में वर्तते हैं l सभी त्रिगुण एक दूसरे के विपरीत व्यवहार करते हैं l जैसे सात्विक गुण प्रबल होने पर राजसिक, तामसिक गुण निर्बल हो जाते हैं l राजसिक गुण के प्रबल होने पर सात्विक, तामसी गुण निर्बल दिखते हैं l तामसी गुण प्रबल हो तो सात्विक, राजसिक गुण निर्बल हो जाते हैं l” यह क्रम निरंतर चलता रहता है l इससे कोई भी व्यक्ति कभी अछूता नहीं रहता है l
सात्विक गुण से प्रेरित सात्विक प्रवृत्ति का मनुष्य विवेकशील होता है, सात्विक भोजन करता है l वह ईश्वर की पूजा करता है l किसी का अहित नहीं करता है, सबका हित सोचता है, विचारता है और निहारता है l वह किसी को निर्धनता, विषमता में नहीं देख पाता है, वह उसकी सहायता करने में विश्वास रखता है, वह सबकी सुख - समृद्धि चाहता है l वह किसी के साथ अन्याय नहीं, न्याय देखना चाहता है l वह सदैव मान - मर्यादा में रहकर सबके हित में कार्य करने वाला होता है l
राजसिक गुणों वाला विवेकशील मनुष्य राजसिक प्रवृत्ति से प्रेरित होकर राजसिक भोजन करता है l देवी - देवताओं की पूजा करता है l वह अपना, अपने परिवार, अपने संबंधियों का ही भला सोचता है, विचारता है और देखना चाहता है l वह अपने आगे किसी अन्य की सुख - समृद्धि नहीं देख पाता है, इर्ष्या करता है l वह अपने और अपनों के लाभ हेतु दूसरों के साथ अन्याय भी करने में संकोच नहीं करता है l उसके लिए हर मान - मर्यादा अपने लिए और अपनों तक ही सीमित होती है l
तामसी गुणों का स्वामी मनुष्य तामसी प्रवृत्ति के कारण सदैव तामसी भोजन करता है l वह भूत- प्रेतों की पूजा करता है l वह मात्र अपना भला सोचता है, विचारता है और चाहता है l वह सदैव अपने मनोविकारों से प्रभावित, उनमें लिप्त और चूर रहता है l उसके लिए सत्य - ज्ञान विष समान होता है l वह मान - मर्यादा का कोई भी महत्व नहीं समझता है l वह जो चाहता है, करता है l भले ही उसे उसका कितना भी मूल्य क्यों न चूकाना पड़े l
विभिन्न मत –
त्रिगुणमयी मानव प्रकृति से प्रेरित हर व्यक्ति की व्यक्तिगत सोच, राय, विचार मत कहलाता है l चुनाव में मत को वोट कहा जाता है l संविधान के अनुसार स्थानीय निकायों, विधान सभा या लोक सभा के लिए चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी के पक्ष में वोट डालकर उसे जिताने की समस्त प्रक्रिया व्यक्तिगत मत पर निर्भर करती है, उसी से सम्पन्न होती है l देश भर में विभिन्न अनेकों विचारधारायें होने के कारण रजनीतिक दलों की भी कोई कमी नहीं है l कौन मतदाता चुनाव बूथ पर जाकर किसे वोट दे देगा ! यह संशय चुनाव सम्पन्न होने तक बना रहता है l हर व्यक्ति का एक - एक मत बहुमूल्य होता है l उसमें इतनी शक्ति होती है कि एक मत बढ़ जाने से किसी विधायक या सांसद की सरकार बन भी सकती है और एक मत की कमी रह जाने पर उसकी सरकार गिर भी सकती है l जन मत, सिद्धांत, पन्थ किसी संस्था, समुदाय या राजनीतिक दल के ही हो सकते हैं l
जागरूक मतदाता –
किसी विषय पर दूसरों के समक्ष अपनी सोच, राय या विचार प्रस्तुत करने वाला, चुनाव के समय वोट डालने वाला अथवा समर्थन करने वाला मतदाता होता है l संविधान के अनुसार - जो मतदाता भारत का नागरिक हो l जो आचार संहिता लगने तक संपूर्ण 18 वर्ष का हो गया हो l जो उस निर्वाचन क्षेत्र का निवासी हो, जहाँ मतदान सूचि में मतदाता के रूप में उसका पहली बार नाम अंकित हुआ हो, वह मतदाता मतदान करने की योग्यता रखता हो l उसे लोक तांत्रिक देश भारत में 18 वर्ष से ऊपर के हर किशोर/युवा को संवैधानिक रूप से आजीवन अपना मतदान करने का अधिकार प्राप्त होता है l निर्वाचन काल में वह मतदाता अपने मतदान से अपनी पसंद के प्रत्याशी की हो रही हार को भी अपने एक मत से उसकी जीत में परिवर्तित कर सकता है, ऐसी अपार क्षमता रखने वाले उसके मत को बहुमूल्य कहा जाता है l 1996 में माननीय अटल विहारी वाजपेयी जी की केन्द्रीय सरकार थी जिन्हें मात्र एक मत की कमी के कारण हार का सामना करना पड़ा था l हर लोकतान्त्रिक देश में किसी नेता, दल या दल की विचारधारा को लेकर उसके बारे में मतदाता की जो अपनी राय या मत होता है, उसे उसका मतदान के समय उपयोग अवश्य करना चाहिये l एक अच्छा मतदाता वही हो सकता है जो जागरुक हो l वह चंद सिक्कों के लिए कभी बिकता नहीं है, किसी से डरता नहीं है l उसे मतदान किसे देना है, उसने वोट किसे दिया है ? इन सभी बातों की वह सदा गोपनीयता बनाये रखता है l
संयुक्त मतदान –
किसी विषय पर अपना मत व्यक्त करने की प्रक्रिया मतदान होती है l दूसरों के समक्ष किसी विषय पर अपनी सोच, राय अथवा विचार प्रस्तुत करना, या चुनाव के समय वोट डालना, प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष समर्थन करना मतदान कहलाता है l मतदान दो प्रकार के होते हैं – पहला सबसे अच्छा चुनाव वह होता है जो निर्विरोध एवं सर्वसम्मती से सम्पन्न हो l इसमें प्रतिस्पर्धा के लिए कोई स्थान नहीं होता है और दूसरा जो ईवीएम में किसी प्रत्याशी के पक्ष में चुनाव चिन्ह का बटन दबाकर मतदाताओं के द्वारा अपना संयुक्त समर्थन प्रकट किया जाता है, मतदान कहलाता है l लेकिन प्रतिस्पर्धा मात्र दो ही प्रत्याशी प्रतिद्वद्वियों में अच्छी होती है l चुनाव आयोग के द्वारा चुनाव बूथ पर निर्धारित चुनाव की निश्चित समयावधि में चरणवद्ध ढंग से मतदाताओं के द्वारा संयुक्त मतदान का समापन्न होता है l
मतदान के लाभ –
संविधानिक व्यवस्था के अंतर्गत हर पांच वर्ष पश्चात, मतदाताओं के द्वारा संयुक्त मतदान करने से स्थानीय निकायों, विधान सभा या लोक सभा के लिए चुनाव संपन्न होते हैं l मतदाता, व्यक्ति या संस्था के द्वारा मतदान करके महत्व पूर्ण कार्य करने या बोलने के लिए अधिकृत प्रत्याशी, व्यक्ति को उसका प्रतिनीधि चुना जाता है l मतदान करने से किसी उत्तरदायी व्यक्ति, जन समुदाय, जन संस्था को फलने - फूलने का समान अवसर मिलता है l मतदान से देश में लोकतान्त्रिक व्यवस्था सशक्त होती है l मतदान से व्यक्ति, परिवार समाज और राष्ट्र का चहुँ - मुखी उत्थान और विकास होता है, शांति स्थापित होती है, सुख - समृद्धि आती है l
शत्रुओं की समाज विरोधी गतिविधियाँ –
जनता को जब उसके पुरुषार्थ और सरकार से सुख सुविधाएँ प्राप्त होने लगती हैं तो वह सब देश के दुश्मनों और गद्दारों को उचित नहीं लगता है l वे ऐसी व्यवस्था को नष्ट करने में विपरीत विचारधारा के होते हुए भी एकजुट हो जाते हैं, उसके विरुद्ध तरह - तरह के षड्यंत्र करने लगते हैं l वे गुरुकुलों का विरोद्ध करते हैं l अधिक से अधिक मदरसे, स्कूल स्थापित करके बच्चों में हिंसा, आतंक वाद, जिहाद, अलगाववाद, परिवारवाद जैसे वीज वोकर, वैसी मानसिकता को बढ़ावा देते हैं और दोष दूसरों को देते हैं l वे स्थान - स्थान पर हिंसा करते हैं l महिलाओं का अपमान करते हैं, उनका अपहरण, बलात्कार और धर्मांतरण भी होता है l
सुझाव –
शत्रु और गद्दारों के संस्कार और उनकी नीच मानसिकता कभी बदलती नहीं है लेकिन उसे जन मत शक्ति से नियंत्रित अवश्य किया जा सकता है l इसके लिए संस्कारित मतदाताओं की अपनी सोच, राय, अथवा विचार देश, धर्म, संस्कृति से ओतप्रोत होने चाहिए l किसी भी मतदाता को अपने कार्य में चाहे वह जितना भी व्यस्त क्यों न हो उसे समय निकालकर वांछित मतदान अवश्य करना चाहिए l संविधान में लोकतान्त्रिक ढंग से संयुक्त मतदान करके सरकार चुनने की व्यवस्था है l संस्कारित मतदाता संस्कारी प्रत्याशी को वोट देकर उसे अपना सफल संस्कारी प्रतिनिधि बना सकता है l सरकार को ऐसी व्यवस्था अवश्य करनी चाहिए जिससे कोई भी मतदाता मतदान किये बिना छूट न सके l मतदान करना सभी के लिए अनिवार्य होना चाहिए l इससे उत्तरदायी और लोक प्रिय सरकार का गठन हो सकता है l वह ऐसी व्यवस्था अवश्य करेगी जिससे शत्रुओं और गद्दारों की मानसिकता के विपरीत जन साधारण में सतर्कता, जागरूकता आयेगी l वह संगठित होने की तत्परता दिखाएगा l पीड़ितों के प्रति सद्भावना, सेवा, सहायता करना उसका स्वभाव बन जायेगा l
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